सम्मोहन और मन का चक्रों से अंतर्संबंध!
सम्मोहन हमारे कौन से चक्र से संबंधित है, आज्ञा या ह्रदय से?
और क्या अचेतन और अवचेतन मन का भी हमारे चक्रों से कोई संबंध है? Divyrajsinh Rahevar
सम्मोहन हमारे अचेतन मन से संबंधित है, और अचेतन मन का संबंध है चौथे अनाहत चक्र से है। अतः सम्मोहन का हमारे अनाहत चक्र से अंतर्संबंध निहित है। तथा सम्मोहन में हम शरीर को नींद में ले जाने के लिए चेतन मन को सुलाते हैं और इसके लिए दोनों आंखों को आज्ञा चक्र में केंदित कर देते हैं। अतः आज्ञाचक्र सम्मोहन का आधार है।
चेतन मन में हमारी बचपन से अभी तक की ही स्म्रतियां दर्ज हैं लेकिन अचेतन मन में हमारे पिछले जन्मों की स्मृतियां भी दर्ज हैं। हम अचेतन मन के साथ जन्म लेते हैं। उम्र के बढ़ने के साथ ही चेतन मन निर्मित होने लगता है, हम बोलने और पढ़ने लगते हैं। शब्दों में बोलते हैं और शब्दों के साथ चित्रों की भाषा में विचार आने लगते हैं। हम शब्द "क" से "कमल" पढ़ते हैं और कमल के फूल की आकृति हमारे भीतर विचारों में बनने लगती है और धीरे-धीरे हमारा चेतन मन निर्मित होता चला जाता है।
जिस चेतन मन का निर्माण शरीर के साथ होता है, शरीर के छूटते ही चेतन मन भी शरीर के साथ यहीं छूट जाता है। और अचेतन मन आत्मा के साथ चला जाता है। अचेतन मन का संबंध अनाहत चक्र से है अतः अनाहत चक्र हमारे साथ जाता है बाकी के तीन चक्र यहीं छूट जाते हैं। मूलाधार शरीर का चक्र है, स्वाधिष्ठान भाव का चक्र है और मणिपुर विचार का चक्र है। अतः शरीर के साथ ही भाव और विचार के छूटने पर मूलाधार, स्वाधिष्ठान और मणिपुर तीनों चक्र भी यहीं छूट जाते हैं और अगले जन्म में नये शरीर के साथ तीनों चक्र फिर से विकसित होने लगते हैं।
मूलाधार, स्वाधिष्ठान और मणिपुर यह तीनों चक्र संसार के हैं इसलिए नश्वर है और संसार में ही छूट जाते हैं और विशुद्धी, आज्ञा और सहस्त्रार यह तीनों चक्र अध्यात्म के हैं, इसलिए ये सनातन है। अनाहत चक्र बीच में है।
अनाहत चक्र का संबंध अचेतन से है और अचेतन में हमारी वासनाएं दर्ज हैं अतः वे वासनाएं अगले जन्म में ले जाती है। अतः अनाहत चक्र संसार में आने के लिए वाहन का काम करता है। जिस दिन अनाहत चक्र से विशुद्धी चक्र में प्रवेश हो जाएगा उस दिन अनाहत चक्र के साथ ही अचेतन भी छूट जाएगा और अचेतन मन के छूटते ही समस्त वासनाएं भी छूट जाएंगी और वासनाओं के छूटते ही जन्म-मृत्यु से छुटकारा हो जाएगा और आत्मा में प्रवेश हो जाएगा।
शरीर छूटने के बाद अचेतन मन हमारे साथ जाता है इसलिए पिछले जन्म की सारी स्मृतियाँ अचेतन मन में दर्ज हो जाती है जिन्हें सम्मोहन द्वारा अचेतन मन में प्रवेश करके जागाया जा सकता है। इसलिए सम्मोहन विज्ञान बहुत उपयोगी है।
सम्मोहन में हम चेतन मन को शांत कर सुला देते हैं तो अचेतन मन जाग जाता है। चेतन मन शरीर के साथ ही साथ जन्मता है इसलिए इसका शरीर से अंतर्संबंध बहुत गहरा है। यानि शरीर सोयेगा तो ही चेतन मन सोयेगा। इसलिए हम सम्मोहन में शरीर को नींद में ले जाते हैं। सुझाव देते हैं कि "तुम्हें नींद आ रही है।" ताकि शरीर नींद में चला जाए तो चेतन मन भी सो जाए और हमारा अचेतन मन से संपर्क हो जाए।
सम्मोहन में हमारी दोनों आंखों को सम्मोहनविद की आंखों में या किसी एक बिंदू पर ठहरा दिया जाता है। आंखें ज्यों ही ठहरती है हमारे विचार रूक जाते हैं। क्योंकि आंखें विचारों के साथ-साथ गति करती है। अतः आंखों की गति के रुकते ही विचार भी रुक जाते हैं।
जबान शब्दों को भीतर बोलती है और आंखें जबान द्वारा बोले गये शब्दों को विचार बनाकर हमारे भीतर चित्रों में अभिव्यक्त करती है इसलिए आंखें सतत गति करती रहती है। यहां पर सम्मोहन में आंखों के एक बिंदू पर ठहरते ही भीतर चित्र बनने बंद हो जाते हैं अतः विचारों को गति करने के लिए चित्र नहीं मिलते हैं और हमारे विचार रुक जाते हैं। दूसरे, जो विचारों को भीतर देख रहा था - साक्षी, वह विचारों से अपना ध्यान हटाकर आंखों को बिंदू पर ठहराने में लग जाता है इसलिए भी विचार रुक जाते हैं।
बिंदू पर आंखों के ठहरते ही हमारी दोनों आंखों की बाहर देखने वाली ऊर्जा बिंदू से टकराकर वापस लौटती है और ऊर्जा ज्योंही वापस लोटती है तो दोनों आंखों के बीच में स्थित आज्ञाचक्र उर्जा को लपक लेता है और हमारी दोनों आंखों की उर्जा आज्ञाचक्र में प्रवेश करने लगती है और दोनों आंखें आज्ञाचक्र में पूरी तरह से सम्मोहित हो जाती है। दोनों आंखों की उर्जा आज्ञाचक्र खींच लेता है अतः दोनों आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। उधर विचारों के रूकने से शरीर से सारे तनाव हट जाते हैं और शरीर शिथिल हो जाता है जिससे श्वास नाभि तक जाने लगती है, शरीर नींद वाली भाव दशा में आ जाता है और आंखों के आगे अंधेरा छाने से शरीर नींद में चला जाता है और चेतन मन सो जाता है।
सम्मोहनविद सुझाव देता है कि "तुम्हें नींद आ रही है... तुम्हें नींद आ रही है... ।" सुझाव चेतन मन को दिया गया था। चेतन मन का सोना ही अचेतन मन का जागना है। चेतन मन सोते समय बात का अंतिम सिरा अचेतन के हाथ में थमा देता है। अतः जो सुझाव चेतन मन को दिये जा रहे थे उनका अनुगमन अब अचेतन मन करने लगता है और सम्मोहनविद का सम्मोहित व्यक्ति के अचेतन मन से संबंध हो जाता है।
दोनों आंखें आज्ञाचक्र में सम्मोहित हो जाती है। जब तक दोनों आंखें आज्ञाचक्र से अलग नहीं होंगी हम सम्मोहन के बाहर नहीं आ सकेंगे तभी तो सुझाव देते समय सम्मोहनविद अचेतन से कहता है कि "जब मै एक, दो, तीन कहूंगा और तुम नींद से बाहर आ जाओगे।" और जैसे ही सम्मोहनविद "एक, दो, तीन" कहता है, नींद टूट जाती है और व्यक्ति सम्मोहन के बाहर आ जाता है।
चेतन मन का संबंध हमारे तीसरे मणिपुर चक्र से है। मणिपुर विचारों का चक्र है। तथा अचेतन और अवचेतन दोनों का संबंध अनाहत चक्र से है । यानि अचेतन मन अनाहत चक्र का बैठक खाना है और अवचेतन मन पूरा मकान है। अर्थात अचेतन और अवचेतन अनाहत चक्र के दो हिस्से हैं!
हमारी सारी ऊर्जा मणिपुर चक्र से विचारों में बह रही है। इस उर्जा को विचारों से मुक्त कर अचेतन में या कहें कि अनाहत चक्र में प्रवेश करने के लिए ही सारी साधनाएं की जाती है।
चेतन, अचेतन और अवचेतन तीनों के प्रति हम जागे हुए नहीं हैं। दिन में जब हम विचारों में उलझे रहते हैं तो हम चेतन मन में होते हैं। रात नींद में जाते ही चेतन मन सो जाता है और अचेतन मन जाग जाता है तो हम अचेतन मन में होते हैं और अचेतन हमें सपने दिखाने लगता है। और आधी रात के बाद जब हम गहरी नींद में होते हैं तब हम अवचेतन में प्रवेश कर जाते हैं जहां पर सपनें विदा हो जाते हैं और एक गहन विश्राम हमें घेर लेता है। अवचेतन के इस विश्राम से हमें ऊर्जा मिलती है और सुबह हम जीवंत होते हैं, ताजा होते हैं। यदि गहरी नींद नहीं आती है तो हमारा अवचेतन मन में प्रवेश नहीं होता है, हमें ऊर्जा नहीं मिलती है तो हम दिनभर उनींदा और थका-थका हुआ सा अनुभव करते हैं। इसलिए जीवन में श्रम करना महत्वपूर्ण माना गया है ताकि शरीर थक जाए और हमें गहरी नींद आए और अवचेतन से उर्जा मिलती रहे और हमारा साक्षी होना बढ़ता रहे।
तो हम कैसे जागें चेतन, अचेतन और अवचेतन मन के प्रति?
हम सीधे चेतन मन के प्रति नहीं जाग सकते हैं चेतन मन विचारों का तल है, हम जितना विचारों को देखने का प्रयास करते हैं उतना ही वे और भी दोगुनी गति से आने लगते हैं। चेतन मन के प्रति जागने के लिए पहले हमें शरीर के प्रति जागना होगा क्योंकि शरीर पहला तल है। हम शरीर की क्रियाओं के प्रति जागे हुए रहते हैं तो क्रियाओं में बह रही अनावश्यक उर्जा हमारी ओर बहने लगती है। जैसे कि हम कुर्सी पर बैठते हैं तो हमारे पैर हिलने लगते हैं और हमारा ध्यान नहीं होने के कारण वह उर्जा व्यर्थ बाहर चली जाती है। यदि हम पैरों के हिलने को देखते हैं, तो पैरों में दबी उर्जा बाहर नहीं जाकर भीतर देखने वाले को मिलने लगती है। और जब शरीर की क्रियाओं से शरीर में दबी पड़ी सारी उर्जा देखने वाले को, या साक्षी को मिल जाती है तो धीरे-धीरे दूसरा तल भाव हमारी पकड़ में आता है और भाव के पकड़ में आते ही क्रोध और ईर्ष्या में बहने वाली ऊर्जा देखने मात्र से हमारी ओर बहने लगती है। जब शरीर की क्रियाओं और भावों की उर्जा साक्षी को मिलने लगती है तो तीसरे तल पर चल रहे विचार हमें अपने से दूर फिल्म की तरह चलते हुए दिखलाई पड़ने लगते हैं।
तीसरे तल पर हमें विचार अपने से दूर दिखाई पड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे विचार लड़खड़ाने लगते हैं, गिरने लगते हैं। दो विचारों के बीच में खाली जगह दिखाई पड़ने लगती है और धीरे-धीरे हमारा विचार से निर्विचार यानि चेतन मन से अचेतन मन में प्रवेश होता चला जाता है। अचेतन में प्रवेश होते ही सपने विदा होने लगते हैं और हम नींद में भी जागे हुए रहते हैं। जब हम नींद में भी जागे हुए रहते हैं तो धीरे-धीरे गहरी नींद में भी हम जागे हुए रहते हैं और हमारा अवचेतन मन में प्रवेश होता चला जाता है।
अचेतन मन अनाहत चक्र का उपरी हिस्सा है- जहां पर स्वप्न चलते हैं और अवचेतन मन अनाहत चक्र का गहरा हिस्सा है- जहां पर उर्जा का भंडार है। जब हम गहरी नींद में अवचेतन मन में पूरी तरह से जाग जाते हैं तो हमारी पांचवें विशुद्धी चक्र यानि आत्मा में प्रवेश करने की यात्रा शुरू हो जाती है।
मणिपुर चक्र - चेतन मन से संबंधित है। अनाहत चक्र- अचेतन और अवचेतन मन से संबंधित है और विशुद्धी चक्र - आत्मा से संबंधित है।
शरीर की क्रिया, भाव और विचारों के साक्षी होने से अचेतन में प्रवेश हो जाता है। लेकिन... यह एक दिन की बात नहीं है, इसे पूरे समय साधना होगा, संकल्प पूर्वक सतत साधना होगा तभी प्रवेश संभव है।
स्वामी ध्यान उत्सव