नमन्ति फलिनो वृक्षा: नमन्ति गुणी नो जना:
शुष्क वृक्षा शच मूर्खा शच न नमन्ति कदा चन:।।
🙏🙏🙏राम राम मित्रों।
इस श्लोक का भाव ये है कि फल दार वृक्ष और गुणी मनुष्य सदा झुक जाते हैं लेकिन सूखा पेड़ और मूर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकता।
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आज विजय दशमी है, इस त्योहार पर लोग शस्त्र पूजन करते हैं और बुराई के प्रतिक रावण का दहन किया जाता है।
आप रावण को किस श्रेणि मे रखते हैं ये आपके विवेक पर निर्भर है। कि वह मूर्ख था या पण्डित महा ज्ञानी।
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इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह वेदों को जानने वाला विद्वान रहा, शिव भक्त भी रहा, अपनी भुजाओं के बल से उसने दुनिया को वश मे किया।
शिव तांडव स्तोत्र उसकी एक महान रचना रही।
लेकिन इस के साथ साथ वह शक्तियों के अभिमान मे भी आया, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता, उसने ऐसे कुकृत्य भी किये जो माफी के लायक नहीं हैं।
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मानस के बाल कांड मे एक एक कर रावण के कृत्य बताये गए हैं कि उसने किस तरह गौ और ब्राह्मणों को जिंदा जलाया। क्योंकि ब्राह्मण उसके दुष्कर्मों का विरोध करते थे।
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बहुत से मेरे विद्वान मित्र आज भी उसके द्वारा की हुई भक्ति आदि से प्रभावित होकर उसके पुतले जलाने का विरोध करते हैं।
एक तरफ तो वो कहते हैं कि राम🙏 चरित मानस भगवान शिव द्वारा रची गई और सुसमय देखकर मा पार्वती जी को सुनाई गई।
उसी कथा को ज्यों का त्यों तुलसी जी ने भाषा बद्ध किया और वो भी, हनुमान जी की देख रेख में।
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अब ये तो वही बात हुई कि हम मानस को तो मानें लेकिन मानस की न मानें। क्या ये ठीक है ? कि किसी और ने किसी अन्य ग्रन्थ मे रावण का महिमा मण्डन कर दिया, और हम उसी को गाते फिरें।
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वो विद्वान ये कहते मिलते हैं कि रावण ने तो रामेश्वरम मे लिंग स्थापना कराई थी। जबकि मानस मे स्पष्ट रूप से ये पूजा अगस्त आदि ऋषि मुनियों द्वारा कराई गई।
पढ़ें लंका कांड दोहा/ १/ चौपाई ३
दूसरे वो रावण का महिमा मंडन करते हुए कहते हैं कि रावण ने तो लक्ष्मण को मरते समय बहुत सुंदर उपदेश दिया, यानी कुछ भी?
जिस व्यक्ति का जीवन vrtman मे दोषों से भरा हो, भले ही उसने पूर्व समय मे कुछ अच्छा किया भी हो, तो उसका कोई महत्त्व रहता ही नहीं। क्योंकि अंत भला सो भला।
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ये तो वही बात हुई जैसे कोई व्यक्ति पूर्व मे पहलवान रहा हो उसने खूब नाम भी कमाया हो लेकिन कुछ काल बाद वह व्यसनों का शिकार होकर टी बी की बीमारी से ग्रस्त हो जाय, कमजोर पड़ जाए।
तो क्या हम उसे किसी प्रतियोगिता मे इस लिये भेज दें कि वह पूर्व मे पहलवानी कर चुका है?
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राम चरित मानस मे लंका कांड मे स्पष्ट आया है कि प्रभु श्रीराम जी ने ३१ बाणों का संधान किया,
दस बाण रावण के सिर मे मारे और बीस बाण उसकी भुजाओं में।
एक बाण उसकी नाभि मे मारा गया।
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उसका सर जाकर मंदोदरी की गोद मे जा गिरा। वह छाती पीटने लगी। तब रावण का सिर विहीन रुण्ड नाचते हुए पृथ्वी पर गिर पड़ा। वह मृत्यु को प्राप्त हो चुका था।
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इतना कुछ हो गया तो फिर लखन लाल जी को उपदेश क्या रावण की आत्मा ने दिया? या उसका कोई भूत पैदा हो गया?
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क्यों यारों अपने धर्म को मजाक बनाने पर तुले हो?
🚩🚩कल टी वी पर डिबेट चल रही थी, मै देख रहा था कि हम जिन बाबाओं पर भरोसा करते हैं कि ये डिबेट मे सही पक्ष रखेंगे, वो भी शायद कभी मानस पढ़े हों। मै नाम नहीं लूंगा, न तो उनसे शिव तांडव का सही उच्चारण हुआ न और कोई ज्ञानी होने की बात दिखी।
👇👇👇👇रावण दहन, केवल रावण की बुराइयों का प्रतीक है न कि रावण की अछाइयों का।
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आज भी घरों मे, गोबर के दस सिर बनाये जाते हैं और फिर उनकी पूजा की जाती है, तो ये रावण के सद् गुणों की पूजा है।
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हालांकि मेरी दादी मां इस अर्ध गोले को धनुष की पूजा यानी शस्त्र पूजन कहती आई हैं, जो सब सनातनी परिवारों मे आज भी चल रही है। इन सब क्रियाओं को आप कैसे मानते हैं ये मै आप पर छोड़ता हूँ। कि रावण दहन सही है या नहीं।
रावण को प्रभु श्रीराम जी के सम कक्ष खड़ा दिखाना या उनसे भी ज्यादा ज्ञानी दिखाना क्या जायज है?
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प्रभु श्रीराम जी ने तो लखन को वनों मे रहते रहते अनेक उपदेश दिये जो मानस मे जगह जगह आये हैं फिर कौन सी कसर रह गई थी, जो प्रभु श्रीराम जी लखन को रावण के पास उपदेश के लिए भेजते?
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आज के लिए इतना ही, आपके कोमैन्ट्स का इंतजार रहेगा।
आप सब को विजय दशमी की बहुत बहुत बधाईयाँ।
मंगत खरिन्डवा गुरुग्राम। 🙏🙏🙏🙏🙏